मंगलवार, 26 जनवरी 2016

न धरती है न अब आकाश अपना - चंद्रभानु भारद्वाज

न धरती है न अब आकाश अपना;
हमारे संग है विश्वास अपना।

गड़ाया पीठ में चाकू उसीने,
समझते थे जिसे हम ख़ास अपना।

उमर के प्रष्ट कुछ भीगे हुए हैं,
लिखा है दर्द ने इतिहास अपना।

न दीवारें न दरवाजे न खिड़की,
खुला फुटपाथ है आवास अपना।

सहमती कांच की खिड़की हमेशा,
बना घर पत्थरों के पास अपना।

कहाँ तक रूढियों को और ढोऐं,
नजरिया हो गया बिंदास अपना।

रहे बारात 'भारद्वाज' चौकस,
ठगों के बीच है जनवास अपना।

ज्योति कैसे जलेगी जलाए बिना - चंद्रभानु भारद्वाज

दीप को वर्तिका से मिलाए बिना;
ज्योति कैसे जलेगी जलाए बिना।

स्वप्न आकार लेगें भला किस तरह,
हौसलों को अगन में गलाए बिना।

ज़िन्दगी में चटक रंग कब भर सके,
सोये अरमान के कुलबुलाए बिना।

एक तारा कभी टूटता ही नहीं,
दूर आकाश में खिलखिलाए बिना।

प्यार का अर्थ आता समझ में नहीं,
आँख में अश्रु के छलछलाए बिना।

तुम इधर मौन हो वह उधर मौन है,
बात कैसे चलेगी चलाए बिना।

लाख परदे गिराकर रखो ओट में,
रूप रहता नहीं झिलमिलाए बिना।

शब्द के विष बुझे बाण जब भी चुभे,
कौन सा दिल बचा तिलमिलाए बिना।

वे बहारें 'भरद्वाज' किस काम की,
जो गईं फूल कोई खिलाए बिना।

तमन्ना थी कि हम उनकी नज़र में खास बन जाते - चंद्रभानु भारद्वाज

तमन्ना थी कि हम उनकी नज़र में खास बन जाते 
कभी उनके लिए धरती कभी आकाश बन जाते 

अगर वे प्यास होते तो ह्रदय की तृप्ति बनते हम 
अगर वे तृप्ति होते तो अधर की प्यास बन जाते

समय की चोट से आहत ह्रदय यदि टूटता उनका 
परम विश्वास बनते या चरम उल्लास बन जाते 

भिगोती जब किसी की याद पलकों के किनारों को 
उमड़ते प्यार में डूबा हुआ अहसास बन जाते 

समय की चाल पर जो ज़िन्दगी की हारते बाजी 
जिताने के लिए उनको तुरुप का ताश बन जाते 

पड़े होते अगर वीरान में बनकर कहीं पत्थर 
वहाँ हर ओर उनके हम मुलायम घास बन जाते 

दिखाई हर तरफ उनको ये 'भारद्वाज' ही देता 
बिठा कर केंद्र में उनको परिधि या व्यास बन जाते

हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ से शिकायत भी नहीं कोई - चंद्रभानु भारद्वाज

वसीयत भी नहीं कोई विरासत भी नहीं कोई
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ से शिकायत भी नहीं कोई

रहा खुद पर भरोसा या रहा है सिर्फ ईश्वर पर
सिवा इसके हमारे पास ताकत भी नहीं कोई

मिले बस चैन दिन का और गहरी नीद रातों की
हमें अतिरिक्त इसके और चाहत भी नहीं कोई

खड़ा है कठघरे में सिर्फ अपना सच गवाही को
हमारे पक्ष में करता वकालत भी नहीं कोई

करे जो दूध का तो दूध पानी का करे पानी
बिके सब हंस अब उनमें दयानत भी नहीं कोई

हवा का देख कर रुख लोग अपना रुख बदलते हैं
हवा को ही बदल दे ऐसी हिकमत भी नहीं कोई

हमारे नाम का उल्लेख 'भारद्वाज' हो जिसमें
कहानी भी नहीं कोई कहावत भी नहीं कोई

बराबर उसके कद के यों मेरा कद हो नहीं सकता - चंद्रभानु भारद्वाज

बराबर उसके कद के यों मेरा कद हो नहीं सकता
वो तुलसी हो नहीं सकता मैं बरगद हो नहीं सकता

मिटा दे लाँघ जाए या कि उसका अतिक्रमण कर ले 
मैं ऐसी कोई भी कमजोर सरहद हो नहीं सकता 

जमा कर खुद के पाँवों को चुनौती देनी पड़ती है 
कोई बैसाखियों के दम पे अंगद हो नहीं सकता 

लिए हो फूल हाथों में बगल में हो छुरी लेकिन 
महज सम्मान करना उसका मकसद हो नहीं सकता 

उफनकर वो भले ही तोड़ दे अपने किनारों को
रहे नाला सदा नाला कभी नद हो नहीं सकता

ख़ुशी का अर्थ क्या जाने वो मन कि शांति क्या समझे
बिहंसता देख बच्चों को जो गदगद हो नहीं सकता

है 'भारद्वाज' गहरा फर्क दोनों के मिज़ाज़ों में
मैं रूमानी ग़ज़ल वो भक्ति का पद हो नहीं सकता