सोमवार, 4 जनवरी 2016

भूखे किसान - महावीर शर्मा

मुश्‍किल भूखों का जीना है  !! 
      मेहनत करके निज हाथों से , बेचारे खेत उगाते हैं , 
      सारे दिन खून बहा अपना , सूरज ढलने पर आते हैं , 
      वर्तमान के कष्‍टों को , मुस्‍का मुस्‍का कर सहते हैं , 
      केवल भावी की आशा में , दो दो दिन भूखे रहते हैं , 
      पकने पर फ़सल बना सोना , उनका बहुमूल्‍य पसीना है । 

      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!

       
      खलिहानों में निज फ़सल देख वह खड़ा खड़ा मुस्‍काता है , 
      सूदख़ोर गाड़ी में भर कर , फ़सल साथ ले जाता है , 
      यूं ही सूरज चला गया , पूनम का चांद निकल आया , 
      उसे लगा यह चांद नहीं , कोई गोल गोल रोटी लाया , 
      एक काले बादल ने आकर , उस रोटी को भी छीना है । 

      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !! 

      पीते हैं कुत्ते दूध कहीं , पर वह भूखा चिल्‍लाता है , 
      ऊंचे महलों के नीचे वह , कुटिया में रात बिताता है , 
      भूखा रहने के कारण उसकी , आंख नहीं लग पाती है , 
      यदि आंख लगे तो सपने में , बिल्‍ली रोटी ले जाती है , 
      इस डर से सोता नहीं रात भर , केवल आंसू पीना है । 

       
      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!

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