बुधवार, 23 दिसंबर 2015

आग से आग लगा कर वो उजाले में रहे ।
दीप से दीप जला कर हम अन्धेरे में रहे । 

धूप बेहतर थी ये एहसास हुआ तब हमको, 
चन्द पल जब किसी एहसान के साए में रहे । 

आपको हमने, हमें आप ने समझा दुश्मन, 
हम भी धोके में रहे आप भी धोके में रहे । 

ये ख़रीदार की क़िस्मत नहीं चालाकी है, 
ये जो ईमान भी तुम बेच के घाटे में रहे ।

कोई किरदार भी अंजाम को पहुँचा है तेरा ?
कोई कब तक तेरे बेसूद फ़साने में रहे ।

हम तो शतरंज के मोहरे थे हमारा क्या था,
हम कभी अपने कभी ग़ैर के ख़ाने में रहे ।

थोड़ा-सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए - ओम प्रकाश नदीम

थोड़ा-सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए । 
उनके तमाम नेक इरादे बदल गए ।

हम अपनी कैफ़ियत से सुबकदोश क्या हुए, 
गुस्ताख़ आरज़ूओं के लहजे बदल गए । 

बनना था जिनको हाल के हालात का बदल’ 
मैं उनसे पूछता हूँ वो कैसे बदल गए । 

अब भी मक़ाम-ओ-मर्तबा अपनी जगह पे हैं, 
लेकिन वहाँ पहुँचने के रस्ते बदल गए ।

जारी है अब भी मुर्दा रिवायात का सफ़र,
मय्यत थी जिन पे सिर्फ़ वो काँधे बदल गए ।

ज़ाहिर करें जो बात वो ज़ाहिर न हो ’नदीम’,
इज़हार के वो तौर-तरीक़े बदल गए ।

जिसे जो चाहिए उसको वही नसीब नहीं - ओम प्रकाश नदीम

जिसे जो चाहिए उसको वही नसीब नहीं ।
मगर ये बात यहाँ के लिए अजीब नहीं ।

हवाएँ आग बुझाने की बात करने लगीं,
कहीं चुनाव का माहौल तो क़रीब नहीं ।

ज़मीन-ए-ज़र से ही इफ़लास जन्म लेता है,
जहाँ अमीर नहीं हैं वहाँ ग़रीब नहीं ।

कोई बताए कि आख़िर मरीज़ जाएँ कहाँ,
कहीं दवाएँ नहीं हैं कहीं तबीब नहीं ।

हमें भी अपने लिए मार्केट बनाना है,
दुकानदार हैं हम सब कोई अदीब नहीं ।

उसे पता ही नहीं रंज में ख़ुशी क्या है - ओम प्रकाश नदीम

उसे पता ही नहीं रंज में ख़ुशी क्या है ।
वो जानता ही नहीं लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी क्या है ।

उन्हें तो मिलते हैं पीने को मुफ्त में दरया,
समुन्दरों से न पूछो कि तिश्नगी क्या है ।

न धूप ने कभी देखी है तीरगी शब की,
न धूप को ये पता है कि चाँदनी क्या है ।

अगर तू वाक़ई बारिश है तो बरस जम कर,
चटा दे धूल घटाओं को देखती क्या है ।

हज़ार लाख सितारे खला में हैं लेकिन,
जो तीरगी न मिटाए वो रौशनी क्या है ।

’नदीम’ शेख़-ओ-बिरहमन ग़रीब क्या जानें,
शराब क्या है, सुबू क्या है, मयकशी क्या है ।

हवा बन कर तुम्हारी ख़ुश्बू को फैला दिया हमने - ओम प्रकाश नदीम

हवा बन कर तुम्हारी ख़ुश्बू को फैला दिया हमने ।
ज़रा सोचो कहाँ थे तुम कहाँ पहुँचा दिया हमने ।

भले ही जल के हमको राख हो जाना पड़ा लेकिन,
तुम्हारे प्यार को उस राख से चमका दिया हमने ।

हमारे झूट को भी सच समझ कर मुतमइन है वो,
बहुत हैरान हैं हम वाह क्या समझा दिया हमने ।

किसी के दर्द की आवाज़ सुन कर चीख़ कर रोए,
अचानक अपने ही एहसास को चौंका दिया हमने ।

न हमसे जब सुलझ पाया तो फिर सुलझे तरीक़े से,
उस उलझे मसअले को और भी उलझा दिया हमने ।

घुमक्कड़ चिड़िया - इंदिरा गौड़

अरी! घुमक्कड़ चिड़िया सुन
उड़ती फिरे कहाँ दिन-भर,
कुछ तो आखिर पता चले
कब जाती है अपने घर।

रोज-रोज घर में आती
पर अनबूझ पहेली-सी
फिर भी जाने क्यों लगती
अपनी सगी सहेली-सी।
कितना अच्छा लगता जब-
मुझे ताकती टुकर-टुकर!

आँखें, गरदन मटकाती
साथ लिए चिड़ियों का दल
चौके में घुस धीरे-से
लेकर गई दाल-चावल।
मुझको देख उड़न-छू क्यों,
क्या लगता है मुझसे डर!

कितना अच्छा होता जो
मैं भी चिड़िया बन जाती,
जाकर पार बादलों के
चाँद-सितारे छू आती।
अपना फ्रॉक तुझे दूँगी,
तू मुझको दे अपने पर।

बादल भैया - इंदिरा गौड़

बादल भैया, बादल भैया,
बड़े घुमक्कड़ बादल भैया!

आदत पाई है सैलानी
कभी किसी की बात न मानी,
कड़के बिजली जरा जोर से-
आँखों में भर लाते पानी।
कभी-कभी इतना रोते हो
भर जाते हैं ताल-तलैया!

सूरज, चंदा और सितारे,
सबके सब तुमसे हैं हारे,
तुम जब आ जाते अपनी पर
डरकर छिप जाते बेचारे।
गुस्सा थूको, अब मत गरजो,
बदलो अपना गलत रवैया!

बरस बरस यह हालत कर दी
बिन मौसम के आई सर्दी,
घर में घुसकर गुमसुम बैठे
बंद हुई आवारागर्दी।
चार दिनों से खेल न पाए
चोर-सिपाही, छुपम-छुपैया!
बंद करो पानी बरसाना
चिड़ियाँ कहाँ चुगेगी दाना,
भला ठान ली इतनी जिद क्यों
भैया कुछ तो हमें बताना।
‘पाकिट मनी’ मिलेगा जब भी
ले लेना दो-चार रुपैया!

दादी वाला गाँव - इंदिरा गौड़

पापा याद बहुत आता है
मुझको दादी वाला गाँव,
दिन-दिन भर घूमना खेत में
वह भी बिल्कुल नंगे पाँव।

मम्मी थीं बीमार इसी से
पिछले साल नहीं जा पाए,
आमों का मौसम था फिर भी
छककर आम नहीं खा पाए।

वहाँ न कोई रोक टोक है
दिन भर खेलो मौज मनाओ,
चाहे किसी खेत में घुसकर
गन्ने चूसो भुट्टे खाओ।

भरी धूप में भी देता है
बूढ़ा बरगद ठंडी छाँव,
जिस पर बैठी करतीं चिड़ियाँ-
चूँ-चूँ कौए करते काँव।

माँ, किसने संसार बसाया - इंदिरा गौड़

माँ, किसने यह फूल खिलाया?
बेटा, जिसने परियाँ, तितली-
खुशबू, सौरभ और पवन को।
नागफनी को चुभन सौंप दी,
पतझड़ और बहार चमन को।
है यह सभी उसी की माया,
उसने ही यह फूल खिलाया।

माँ, किसने आकाश बनाया?
बेटा, जिसने सूरज, चंदा-
धूप, चाँदनी और सितारे।
बादल बिजली इंद्रधनुष के
रंग अनोखे प्यारे-प्यारे।
खुद भी इनके बीच समाया,
उसने ही आकाश बनाया।

माँ, किसने संसार बसाया?
बेटा, जिसने पर्वत, सागर-
नील गगन और इस धरती को।
जिसने मुझको, तुझको, सबको
सुख-दुख, आँसू और खुशी को
जिसने सारा जाल बिछाया,
उसने ही संसार बसाया।