आग से आग लगा कर वो उजाले में रहे ।
दीप से दीप जला कर हम अन्धेरे में रहे ।
धूप बेहतर थी ये एहसास हुआ तब हमको,
चन्द पल जब किसी एहसान के साए में रहे ।
आपको हमने, हमें आप ने समझा दुश्मन,
हम भी धोके में रहे आप भी धोके में रहे ।
ये ख़रीदार की क़िस्मत नहीं चालाकी है,
ये जो ईमान भी तुम बेच के घाटे में रहे ।
कोई किरदार भी अंजाम को पहुँचा है तेरा ?
कोई कब तक तेरे बेसूद फ़साने में रहे ।
हम तो शतरंज के मोहरे थे हमारा क्या था,
हम कभी अपने कभी ग़ैर के ख़ाने में रहे ।
दीप से दीप जला कर हम अन्धेरे में रहे ।
धूप बेहतर थी ये एहसास हुआ तब हमको,
चन्द पल जब किसी एहसान के साए में रहे ।
आपको हमने, हमें आप ने समझा दुश्मन,
हम भी धोके में रहे आप भी धोके में रहे ।
ये ख़रीदार की क़िस्मत नहीं चालाकी है,
ये जो ईमान भी तुम बेच के घाटे में रहे ।
कोई किरदार भी अंजाम को पहुँचा है तेरा ?
कोई कब तक तेरे बेसूद फ़साने में रहे ।
हम तो शतरंज के मोहरे थे हमारा क्या था,
हम कभी अपने कभी ग़ैर के ख़ाने में रहे ।