मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

बदन ख़ुशबू में लिपटा है मगर आँखों में पानी है - अभिनव अरुण

बदन ख़ुशबू में लिपटा है मगर आँखों में पानी है,
ये किसकी याद में खोयी हुई सी रात रानी है।

हया से पत्तियां भीगी हुई शाख़ों से हैं लिपटी,
सुबह की ताज़गी ने रात की लिक्खी कहानी है।

हमें चुभ जाने वाले ख़ार कलियों को नहीं छूते,
सजे संवरे हुए गुलशन पे किसकी हुक्मरानी है।

तेरी सुहबत में दिन मेरा खिला है गुलमुहर जैसा,
तेरी यादों में डूबी रात मेरी ज़ाफ़रानी है ।

दिया होकर भी अब मैं आँधियों से जीत जाता हूँ,
दुआ माँ की है या फिर कोई ताकत आसमानी है।

फ़कीरों को नहीं होता है ग़म कुछ खोने पाने का,
वो यकसा रहते हैं उनकी अमीरी ख़ानदानी है।

किनारा तोड़कर नदियाँ उफनती हैं जवानी में,
मगर सागर बताता है कि उनमें कितना पानी है।

धनक कहते हो तुम जिसको, वो कुदरत का है एक तोहफा,
धरा को आसमां ने प्रेम की भेजी निशानी है।

मुहब्बत एक ख़ुशबू है रहेगी रहती दुनिया तक,
यही कान्हा है राधा है यही मीरा दीवानी है।

मैं ख़ुद को आज़माने के लिए ही घर से निकला हूँ,
मुझे मालूम है बाहर हवा बेहद तूफ़ानी है।

तेरे हाथों के जैसा स्वाद सालन में नहीं रहता,
वही है आग पानी माँ वही चौका चुहानी है।

मुहब्बत पाटती है दो जहां की दूरियाँ “अभिनव” 
करम इस पर ख़ुदा का है ये एक जज़्बा रूहानी है।

आग नहीं कुछ पानी भी दो - अभिनव अरुण

आग नहीं कुछ पानी भी दो
परियों की कहानी भी दो।

छोटे होते रिश्ते नाते
मुझको आजी नानी भी दो।

दूह रहे हो सांझ-सवेरे
गाय को भूसा सानी भी दो।

कंकड पत्थर से जलती है
धरा को चूनर धानी भी दो।

रोजी रोटी की दो शिक्षा
पर कबिरा की बानी भी दो।

हाट में बिकता प्रेम दिया है
एक मीरा दीवानी भी दो।

जाति धर्म का बंधन छोडो
कुछ रिश्ते इंसानी भी दो।

बहुत हो गए लीडर अफसर
ग़ालिब मोमिन फानी भी दो।

झूठ जब भी सर उठाये वार होना चाहिए - अभिनव अरुण

झूठ जब भी सर उठाये वार होना चाहिए,
सच को सिंहासन पे ही हर बार होना चाहिए।

बात की गांठें ज़रा ढीली ही रहने दो मियाँ,
हो किला मज़बूत लेकिन द्वार होना चाहिए।

फ़िक्र ऐसी हो कि हम फाके में भी सुलतान हों,
क्या ज़रूरी है कि बंगला - कार होना चहिये।

मैं कि दुनिया से मिलूँ कैफ़ी और साहिर की तरह,
पास तुम आओ तो मन गुलज़ार होना चाहिए।

घर से शाला तक मेरा बचपन कहीं गुम हो गया,
जी करे हर रोज़ ही इतवार होना चाहिए।

साफ़गोई है तो दिल चेहरे से झांकेगा ज़रूर,
आदमी लिपटा हुआ अखबार होना चाहिए।

मुल्क की खातिर फकत झंडे न फहराएँ हुजूर,
इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिए।

आदमखोर - अभिनव अरुण

तुमने हमारे खेतों में खड़ी कर दीं चिमनियाँ
बिछा दिए हाई - वे के सर्पिल संसार
बना दिए विकास के नाम पर मानवता के आंवे
और अब चाहते हो हम लायें एक और हरित क्रांति ?

क्या तुम नहीं जानते कि हाई वे पर दनदनाते वाहन
अपने साथ उड़ा लाते हैं विकास की अंधी दौड़ की धूल
जहां नस्लें हल उठाना अपनी तौहीन समझती हैं
और दहलीज की संस्कृतियाँ भाग जाती हैं दबे पाँव
शहर की ओर उन्मुक्तता की तलाश में

शायद तुम ये भी नहीं जानते कि मजदूर तब उठाते हैं बंदूकें
जब उनका हक मारा जाता है और आवाज़ कर दी जाती है अनसुनी
तुम्हारे सपने उन्हें कुछ नहीं देते बल्कि छीन लेते हैं
खेतों की बालियाँ माटी और स्वभाव का सोंधापन
जहां आदमी की बढती जाती है प्यास और वो हो जाता है आदमखोर

कितनी दुनिया बसाओगे तुम इस छोटी सी दुनिया में
कहीं आयातित पित्ज़े लोगों के शौक
कहीं नून तेल और प्याज के भी लाले
कहीं पांचतारा स्कूल कालेज
और कहीं टाट को मोहताज हाथों में थाली लिए
बहती नाक पोंछते बच्चे
कहीं फार्मूला वन की रफ़्तार
कहीं पगडंडियों पर भी भ्रष्टाचार की मार
कब देखोगे तुम सौ आँखों और सौ चश्मों से परे की दुनिया और उसका सच
हाँ कि अब जाग रहें हैं हम धीरे ही सही
सो तुम समेटो अपनी खोखली विकास की पोटली
कि हम सुदामा नहीं और उससे बढ़कर ये कि तुम कृष्ण भी नहीं।

सबकी नज़रों में सुनहरी भोर होनी चाहिए - अभिनव अरुण

सबकी नज़रों में सुनहरी भोर होनी चाहिए,
रोज कोशिश रोशनी की ओर होनी चाहिए।

आसमां जा कर पतंगें भूल जाती हैं धरा,
आपके हाथों में उनकी डोर होनी चाहिए।

हो ग़ज़ल ऐसी कि, जैसे लुत्फ़ की परतें खुलें,
शाइरी गन्ने की मीठी पोर होनी चाहिए।

इश्क का जज़्बा इबादत से बड़ा हो जाएगा,
शर्त ये है आशिकी पुरजोर होनी चाहिए।

ज्ञान गीता का भले काम आएगा संग्राम में,
कृष्ण की नज़रें मगर चितचोर होनी चाहिए।

तोड़ सकता है अदब सौ मुश्किलों के भी कवच,
हर कलम पैनी नुकीली ठोर होनी चाहिए।

कोई पश्चाताप की बातें करे तो देखना,
आँख में उसकी ढलकती लोर होनी चाहिए।

जबकि आँखें बंद होने को हों मेरे रूबरू,
माँ तेरे आँचल की स्वर्णिम कोर होनी चाहिए।

देखना जब भी तो उसकी सीरतों को देखना,
ये न हो सूरत ही उसकी गोर होनी चाहिए।

शह्र वाली बोन्साई ख़ूब है पर ज़हन में,
गाँव के बरगद की पुख्ता सोर होनी चाहिए।

चलो मीत - अंजू शर्मा

चलो मीत,
चलें दिन और रात की सरहद के पार,
जहाँ तुम रात को दिन कहो 
तो मैं मुस्कुरा दूं,
जहाँ सूरज से तुम्हारी दोस्ती 
बरक़रार रहे 
और चाँद से मेरी नाराज़गी
बदल जाये ओस की बूंदों में,
चलो मीत,
चलें उम्र की उस सीमा के परे
जहाँ दिन, महीने, साल 
वाष्पित हो बदल जाएँ
उड़ते हुए साइबेरियन पंछियों में
और लौट जाएँ सदा के लिए
अपने देश,

चलो मीत,
चलें भावनाओं के उस परबत पर
जहाँ हर बढ़ते कदम पर
पीछे छूट जाये मेरा ऐतराज़ और 
संकोच,
और जब प्रेम शिखर नज़र आने लगे
तो मैं कसके पकड़ लूं तुम्हारा हाथ
मेरे डगमगाते कदम सध जाएँ 
तुम्हारे सहारे पर,

चलो मीत,
कि बंधन अब सुख की परिधि
में बदल चुका है
और उम्मीद की बाहें हर क्षण
बढ़ रही है तुम्हारी ओर,
आओ समेट लें हर सीप को
कि आज सालों बाद स्वाति नक्षत्र 
आने को है,

चलो मीत,
कि मिट जाये फर्क 
मिलन और जुदाई का,
इंतजार के पन्नों पर बिखरी
प्रेम की स्याही सूखने से पहले,
बदल दे उसे मुलाकात की
तस्वीरों में,

चलो मीत,
हर गुजरते पल में
हलके हो जाते हैं समय के पाँव,
और लम्बे हो जाते हैं उसके पंख,
चलो मीत आज बांध लें समय को 
सदा के लिए,

अभी, इसी पल..............