गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

ग्यारह साल की लड़की - त्रिलोक महावर

प्यासी धरती पर 
गिरती पसीने की बूँदें 
पूछती हैं साँवली लड़की से 
नदी का अता-पता 

हैरान लड़की लिखना चाहती है 
रिपोर्ट गुमशुदा नदी की 
जो बहती थी 
पिछले साल तक 

लड़की परेशान है 
पानी के बग़ैर 
सनेगा कैसे मकई का आटा 
देगची में कैसे पकेगी दाल 
चावल पड़े हैं 
बग़ैर धुले हुए 
दादी ने अभी तक नहीं लिया है 
चरणामृत 
माँ ने दिया नहीं अभी तक 
अर्घ्य सूर्य को 
और तुलसी के बिरवे को पानी
श्यामा गाय प्यासी है 
तीन दिन से नहीं लिपि है झोंपड़ी 

सोचते-सोचते 
अभी से सयानी हो गई 
ग्यारह साल की लड़की ।

आमने-सामने - त्रिलोक महावर

मुर्गे ख़ुद नहीं लड़ते 
लड़ाए जाते हैं

मंड़ई में मुर्गे की टाँग में 
बाँध दी जाती है छुरी 
मैदान में आमने-सामने होते हैं मुर्गे 
आदमी होते हैं मुर्गे के पीछे 

ख़ौफ़नाक खेल शुरू होता है 
मुर्गे भिड़ जाते हैं 
एक-दूसरे से 
दोनों ओर से आदमी 
चीख़ते-चिल्लाते हैं जी भरके 
लहूलुहान मुर्गे अगल-बगल 
कुछ नहीं देखते 

मुर्गे प्रशिक्षित हैं 
जान लेने के लिए 
एक मुर्गा जीतता है 
दूसरा दम तोड़ता है 
भीड़ हो-हल्ला़ मचाती है 

जीतनेवाला आदमी 
हारे हुए मुर्गे को लाद 
चल पड़ता है 
मैदान अभी खाली नहीं हुआ 
तमाशबीनों से 

फिर मुर्गे तैयार हैं 
लड़ाए जाने के लिए

दाखिला - त्रिलोक महावर

झील के किनारे 
बने स्कूल में 
एक बार फिर 
दाख़िला ले लिया है मैंने 

जूट के बस्ते में 
एक नोट बुक, और कुछ नोट्स लिए 
चल रहा हूँ कोलतार की सड़क पर 
किसी ने नहीं थाम रखी है उँगली 
न ही कोई लड़की पीछे से आकर 
मारती है धक्का 
न ही शर्माकर उठाती है 
गिरा दुपट्टा 
लेवेण्डर और ’पासपोर्ट’ की ख़ुशबू का 
अहसास ही नहीं होता है 

औचक ही आकर नहीं झगड़ती है 
प्रिंसिपल की मोटी लड़की 
चिकौटियों के दिन लद गए 
किसी भी टीचर ने डाँट नहीं पिलाई 
कोई हो हल्‍ला भी नहीं है क्लास में ।

बस्ता - त्रिलोक महावर

बस्ता बहुत भारी था
ढोते-ढोते 
एक महीने में 
बेटी का वज़न घट गया 
इंग्लिश स्कूल के 
स्टैंडर्ड फर्स्ट में 
पढ़ते-पढ़ते 
दो बार लगाई गई मेरी पेशियाँ 

मास्टर जी 
परेशान 
मेरी बेटी 
क्यों नहीं करती फॉलो 

आख़िरकार 
तय कर ही लिया 
मैंने बस्ते का बोझ 
कुछ कम करना 

बेटी की ख़ातिर 
अब वह के०जी० टू में है 

पहले से 
ज़्यादा हँस लेती है 
होम-वर्क में 
आतंकित नहीं होती 
पहले की तरह 

सिर्फ़ एक क्लास के लिए 
मैं नहीं छीन सकता 
उसका बचपन 

कभी-कभी मैं सोचता हूँ
स्‍कूल-बस्ता, होम-वर्क 
तनाव को जन्म दे रहे हैं 
बच्चे
तनाव में पल रहे हैं ।

चंदा मामा गोरे-गोरे - त्रिलोक महावर

दूध भरे दूधिया कटोरे
चंदा मामा, गोरे-गोरे!
तुम्हें घेर रखते हैं
रातों में तारे,
कभी-कभी रात छोड़
दिन में भी आ रे।
खेल-कूद संग मेरे सो, रे
चंदा मामा गोरे-गोरे!

बोलो तुम आओगे
क्या मोटरकार में
आ जाना, आ जाना
अबके रविवार में
देखे, मत मारना टपोरे
चंदा मामा गोरे-गोरे!

देखो तो आकर के
कैसे हम रहते,
सुननाा वो सब हमसे
बाबा जो कहते।
ले आना तारों के छोरे
चंदा मामा गोरे-गोरे!

मैया, मैं भी कृष्ण बनूँगा - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मैया, मैं भी कृष्ण बनूँगा
बंशी, मुझे दिलाना माँ।
अच्छा लगता गाय चराना,
मुझको गोकुल जाना, माँ॥

ग्वालों के संग में खेलूँगा,
यमुना बीच नहाऊँगा।
नाथूंगा मैं विषधर काले,
गेंद छुड़ाकर लाऊँगा॥

चोरी चुपके माखन खाकर
शक्तिवान बन जाऊँगा।
मारूँगा मैं असुर कई,
फिर सुरपुर कंस पठाऊँगा॥

राधा के संग भी खेलूँगा,
पर बंशी न दिखाऊँगा।
नाचूँगा मैं दे दे ताली,
सबको खूब रिझाऊँगा॥