रविवार, 6 दिसंबर 2015

वीर की तरह - श्रीकृष्ण सरल

जियो या मरो, वीर की तरह।
चलो सुरभित समीर की तरह।
जियो या मरो, वीर की तरह।

वीरता जीवन का भूषण 
वीर भोग्या है वसुंधरा
भीरुता जीवन का दूषण
भीरु जीवित भी मरा-मरा
वीर बन उठो सदा ऊँचे,
न नीचे बहो नीर की तरह।
जियो या मरो, वीर की तरह।

भीरु संकट में रो पड़ते
वीर हँस कर झेला करते
वीर जन हैं विपत्तियों की 
सदा ही अवहेलना करते
उठो तुम भी हर संकट में,
वीर की तरह धीर की तरह।
जियो या मरो, वीर की तरह।

वीर होते गंभीर सदा 
वीर बलिदानी होते हैं
वीर होते हैं स्वच्छ हृदय
कलुष औरों का धोते हैं
लक्ष-प्रति उन्मुख रहो सदा
धनुष पर चढ़े तीर की तरह।
जियो या मरो, वीर की तरह।

वीर वाचाल नहीं होते
वीर करके दिखलाते हैं
वीर होते न शाब्दिक हैं
भाव को वे अपनाते हैं
शब्द में निहित भाव समझो,
रटो मत उसे कीर की तरह।
जियो या मरो वीर की तरह।

देश के सपने फूलें फलें - श्रीकृष्ण सरल

देश के सपने फूलें फलें
प्यार के घर घर दीप जले
देश के सपने फूलें फलें

देश को हमें सजाना है
देश का नाम बढ़ाना है
हमारे यत्न, हमारे स्वप्न,
बाँह में बाँह डाल कर चलें
देश के सपने फूलें फलें

देश की गौरव वृद्धि करें
प्रगति पथ पर समृद्धि करें
नहीं प्राणों की चिंता हो
नहीं प्रण से हम कभी टलें
देश के सपने फूलें फलें

साधना के तप में हम तपें
देश के हित चिन्तन में खपें
कर्म गंगा बहती ही रहे
निरन्तर हिम जैसे हम गलें
देश के सपने फूलें फलें

हमारी साँसों में लय हो
हमारी धरती की जय हो
साधना के प्रिय साँचे में
हमारे शुभ संकल्प ढलें
देश के सपने फूलें फले

छोड़ो लीक पुरानी - श्रीकृष्ण सरल

छोड़ो लीक पुरानी छोड़ो
युग को नई दिशा में मोड़ो
छोड़ो लीक पुरानी छोड़ो

प्रेरक बने अतीत तुम्हारा
नए क्षितिज की ओर चरण हो,
नए लक्ष्य की ओर तुम्हारे
उन्मुख जीवन और मरण हो
रखे बाँध कर जो जीवन को
ऐसे हर बंधन को तोड़ो
छोड़ो लीक पुरानी छोड़ो।

बीत गया सो बीत गया वह
तुमको वर्तमान गढ़ना है
नया ज्ञान उपलब्ध जिधर हो
तुमको उसी ओर बढ़ना है
तुम जीवन के हर अनुभव से
जितना संभव ज्ञान निचोड़ो
छोड़ो, लीक पुरानी छोड़ो।

पास तुम्हारे अपनी संस्कृति
लक्ष्य, नया विज्ञान तुम्हारा,
नया सृजन इस महादेश का
अब यह हो अभियान तुम्हारा
करने पूर्ण नए लक्ष्यों को
सागर लांघों, पर्वत फोड़ो
छोड़ो, लीक पुरानी छोड़ो।

ज्ञान तर्क सम्मत शुभ होता 
नहीं अंधविश्वास सुखद है,
ग्रहण करो सभी ज्ञान तुम
जो हितकर, जो तुम्हे सुखद है
ज्ञान श्रेष्ठ संपत्ति सभी की
जितना बने, ज्ञान धन जोड़ो
छोड़ो, लीक पुरानी छोड़ो।

जिसे देश से प्यार नहीं हैं - श्रीकृष्ण सरल

जिसे देश से प्यार नहीं हैं
जीने का अधिकार नहीं हैं।

जीने को तो पशु भी जीते
अपना पेट भरा करते हैं
कुछ दिन इस दुनिया में रह कर
वे अन्तत: मरा करते हैं।
ऐसे जीवन और मरण को,
होता यह संसार नहीं है
जीने का अधिकार नहीं हैं।

मानव वह है स्वयं जिए जो
और दूसरों को जीने दे,
जीवन-रस जो खुद पीता वह
उसे दूसरों को पीने दे।
साथ नहीं दे जो औरों का
क्या वह जीवन भार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।

साँसें गिनने को आगे भी
साँसों का उपयोग करो कुछ 
काम आ सके जो समाज के 
तुम ऐसा उद्योग करो कुछ।
क्या उसको सरिता कह सकते
जिसम़ें बहती धार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।

कहो नहीं करके दिखलाओ - श्रीकृष्ण सरल

कहो नहीं करके दिखलाओ
उपदेशों से काम न होगा
जो उपदिष्ट वही अपनाओ
कहो नहीं, करके दिखलाओ।

अंधकार है! अंधकार है!
क्या होगा कहते रहने से,
दूर न होगा अंधकार वह
निष्क्रिय रहने से सहने से
अंधकार यदि दूर भगाना
कहो नहीं तुम दीप जलाओ
कहो नहीं, करके दिखलाओ।

यह लोकोक्ति सुनी ही होगी
स्वर्ग देखने, मरना होगा
बात तभी मानी जाएगी
स्वयं आचरण करना होगा
पहले सीखो सबक स्वयं
फिर और किसी को सबक सिखाओ।
कहो नहीं, करके दिखलाओ।

कर्म, कर्म के लिए प्रेरणा
होते हैं उपदेश निरर्थक
साधु वृत्ति से मन को माँजो
साधु वेश परिवेश निरर्थक।
दुनिया भली बनेगी पीछे
पहले खुद को भला बनाओ।
कहो नहीं, करके दिखलाओ।।

कथनी है वाचाल कहाती
करनी रहती सदा मौन है,
मौन स्वयं अभिव्यक्ति सबल है
इसे जानता नहीं कौन है।
नहीं सहारा लो कथनी का,
करनी से ही सब समझाओ।
कहो नहीं, करके दिखलाओ।।