शनिवार, 26 सितंबर 2015

सम्मानित - अमिताभ बच्चन

लिफ़्टमैन और दरबान जानते थे
वे रिक्शा चलाने वालों से कम कमाते हैं

वे कुछ पढ़े-लिखे थे
रिक्शा चलाने वालों की नियति पर
तरस खाते थे

वे तसल्ली से रहने की कोशिश करते
लिफ़्ट के पंखे की हवा खाते हुए
गाड़ियों का भोंपू सुनकर फाटक खोलते हुए

वे सोचते
वे रिक्शे पर बैठने वाले
सम्मानित लोगों में हैं

उन्हें पक्का यक़ीन था
रिक्शा-चालकों को
रिक्शे की सवारी का सौभाग्य
नसीब नहीं

उन्हें उम्मीद थी
उनका फेफड़ा देर से जवाब देगा

वे समझते थे
रिक्शा खींचने वालों के मुक़ाबले
भविष्य पर
ज़्यादा मज़बूत है उनकी पकड़

पर कुछ ऐसा था
जो न निगलते न उगलते बनता था
जब रिक्शावाले दाखिल होते थे
अपार्टमेण्ट के फाटक के अन्दर|

हम विकट ग़रीब-प्रेमी हैं - अमिताभ बच्चन

हम विकट गरीब-प्रेमी हैं
चाहे कोई सरकार बने
हम उसे ग़रीबों की सरकार मानकर
उसके सामने अपना प्रलाप शुरू कर देते हैं

ग़रीबों के बारे में
हम दृष्टि-दोष से पीड़ित हैं
उनका जिक्र आया नहीं
कि हम रोना शुरू कर देते हैं

ऐसी क्या बात है
कि सारे ग़रीब हमें मरीज़ ही दिखते हैं
लाचार, कर्ज़ में डूबे, कुपोषित, दर्द से चीख़ते,
चुपचाप मरते हुए

उछलते-कूदते, नाचते, शराब पीकर डोलते ग़रीब
हमें पसन्द क्यों नहीं हैं

बम फोड़ते, डाका डालते, आतंक मचाते गरीबों को
हम गरीब क्यों नहीं मानते

ग़रीब घेरते हुए
ग़रीब घिरते हुए
ग़रीब मुठभेड़ करते हुए
मरते-मारते हुए ग़रीब हमें सपनों में भी नहीं दिखते

ग़रीबों को
राज बनाते
मन्त्रालय चलाते देखना
हमारे वश में क्यों नहीं

हम बीमार ग़रीबों को
अस्पताल, बिस्तर और मुफ़्त दवा से ज़्यादा
कुछ और क्यों नहीं देना चाहते

हम उन्हें साक्षर हट्टे-कट्टे मज़दूरों से ज़्यादा
किसी और रूप में क्यों नहीं देख पाते|

हमारा दर्शन | - अमिताभ बच्चन

थोड़ी-बहुत सम्पत्ति अरजने में कोई बुराई नहीं
बेईमानी से एक फ़ासला बनाकर जीना सम्भव है
ईमानदारी के पैसे से घर बनाया जा सकता है
चोर-डाकू सुधर सकते हैं
किराएदारों को उदार मकान-मालिक मिल सकते हैं
ख़रीदार दिमाग ठण्डा रख सकता है
विक्रेता हर पल मुस्कुराते रहने की कला सीख सकता है
ग़रीब अपना ईमान बचा सकते हैं
जीने का उत्साह बनाए रखना असम्भव नहीं
लोगों से प्यार करना मुमकिन है
बारिश से परेशान न होना सिर्फ़ इच्छा-शक्ति की बात है
ख़ुश और सन्तुष्ट रहने के सारे उपाय बेकार नहीं हुए हैं
लोग मृत्यु के डर पर काबू पाने में सक्षम हैं
पैसे वाले पैसे के ग़ुलाम न बनने की तरक़ीब सीख सकते हैं
कारोबार की व्यस्तताओं के बीच एक अमीर का प्रेम फल-फूल सकता है
समझौतों के सारे रास्ते बन्द नहीं हुए
बेगानों से दोस्ती की सम्भावनाएँ ख़त्म नहीं हुई
बच्चों और नौकरों को अनुशासन मे रखने के उपायों का कोई अन्त नहीं
चूतड़ के बिना भी आदमी बैठ सकता है
निरन्तर युद्ध की स्थिति में भी दुनिया बची रह सकती है|

पवित्र हत्यारे - अमिताभ बच्चन

पवित्र हत्यारे दिन-दहाड़े सरेआम की गई हत्या के प्रेमी होते हैं
इसलिए तर्क और प्रमाण की वे हँसी उड़ाते हैं
वे कहते हैं हत्या ऐसी नहीं हो कि हत्यारे का पता लगाना पड़े
सज़ा में फ़ाँसी उन्हें एकमात्र अपनी चीज़ लगती है
चौराहे पर फ़ाँसी देने का आतंक उन्हें प्रिय है
वे कहते हैं कि हत्यारों की भी जघन्य हत्या होनी चाहिए
वे ऐसी हत्या के पक्ष में होते हैं जिसे देखकर रूह काँप उठे
जिसे याद कर सैकड़ों सालों तक डर लगे
पवित्र हत्यारे कहते हैं कि वे मारे जाने से नहीं डरते
वे कहते हैं उन्हें हत्या में भूल, लापरवाही और क्षमा से घृणा है
वे कहते हैं आदमी को ग्रंथियों से मुक्त होना चाहिए
वे अपने अनुयायियों से मजबूत चरित्र की उम्मीद रखते हैं
वे कहते हैं नींद में की गई हत्या अपवित्र होती है
वे कहते हैं शराब पीकर हत्या करना बहादुरी नहीं है
उनकी नज़र में सबसे शानदार हत्या वह है
जिसमें जालसाजी और धोखाधड़ी का सहारा बिल्कुल न लिया गया हो
वे ऐसे क़त्लेआम के पक्ष में होते हैं
जिसे देखकर किसी हत्यारे का सर शर्म से न झुके|

मेरी अन्तरात्मा में क्या है - अमिताभ बच्चन

मेरी अंतरात्मा में क्या है
कुछ ज़रूरी सिक्के 
कुछ और सिक्कों के आने की उम्मीद
धनिकों का लोकतन्त्र 
वंचितों का अमानवीय जीवन 
धनिक बनने की मेरी अनिच्छा 
एक खिन्न असन्तुष्ट आदमी
एक आसान मौत पाने की योजना 
मालिक का एक बिगड़ा हुआ नौकर
नीचतापूर्ण तुच्छ कार्यों की निस्सारता से आहत
शोषितों के संघर्ष और पराजयों को
सुरक्षित दूरी से निहारता
एक बौना
एक कापुरूष
वंचितों के एक विराट विद्रोह की कामना
जो मेरी नकली उदारता, लघुता, पापबोध और अवसरवादिता से मुक्त कर दे 
मैं बेचता रहता हूँ सस्ते में
अपनी अन्तरात्मा
जब सिक्के पूरे नहीं पड़ते
अनिच्छाएँ कवच हैं
मेरी अन्तरात्मा की
फल-फूल रही हैं
जिसमें मेरी शाश्वत निराशाएँ
और धनिकों का लोकन्त्र|

मैं दस साल का था - अमिताभ बच्चन

मैं दस साल का था
तो सौ बच्चों के साथ खेलता-कूदता था
भागता-दौड़ता लुकता-छुपता था
बीस साल का हुआ
तो दस में सिमट गई मेरी टोली
कुछ मुझे मतलबी दिखते
कुछ को मैं आत्मग्रस्त दिखता
चालीस के आसपास
जिन चार-पाँच से मैं घिरा रहता
वे मेरे ख़ून के प्यासे नज़र आते
कभी वे मेरी, कभी हम उनकी
गर्दन दबाते
अब सत्तावन का हो गया हूँ
सबसे बिछड़ गया हूँ
कोई इंसान नहीं
कुछ चीज़ें हैं मेरे पास
अब उन्हीं की है आस
मुझे भी और उन्हें भी
जो आएँगे शायद
मरने पर
मुझे जलाने|

महान बनने का भूत - अमिताभ बच्चन

महान बनने का भूत
मुझे दीमक-सा चाट गया
मेरे सोए कवि को
जहरीले साँप-सा काट गया
मोची से उसके बक्से पर बैठ
बतियाने में
लड़की को छेड़छाड़ से बचाने में
दोस्तों को जुआ खेलने से हड़काने में
भंग खाकर ठिठियाने में
सूट्टे लगाने में
जैसे तैसे दिल्ली आ जाने में
मरने के बाद पिता की डायरी को
आविष्कारक की तरह पढ़ने में
दो एक बार माँ का इलाज कराने में
लोभ लालच और अपनी नीच हरकतों से
कभी कभार झटका खा जाने में
पण्डे-पुरोहितों से लड़ जाने में
बीड़ी-खैनी खाकर रात भर जग जाने में
मरे हुए कुछ दार्शनिकों को
मन ही मन
दोस्त दुश्मन और शागिर्द बनाने में
इधर उधर दो चार कविता छपाने में
निकल गई मेरी सारी महानता
फुस्स हो गई कविता|

जिन्हें प्रेम नसीब नहीं हुआ - अमिताभ बच्चन

जिन्हें प्रेम नसीब नहीं हुआ
उन्हें रसायनशास्त्र से प्रेम नहीं हुआ
उनके हाथ लगा रसायनशास्त्र
जैसे जीवशास्त्र पढ़ते हुए
किसी को बैंक किसी को सेना हाथ लगे
उन्हें प्रेम नहीं हुआ
वह स्वयं
एक ज़िम्मेदार, अनुशासित औरत के
हाथ लगे
दोनों को फाटक वाला घर
सुरक्षा की चिन्ता
हाथ लगी
जिस दिन
रसायनशास्त्र खो गया
बचा सिर्फ़ चाबियों का एक बड़ा-सा गुच्छा
कुछ फ़ौलादी ताले
चोरों का डर
उन्हें प्रेम नहीं हुआ
सुरक्षा की सुरक्षा करते हुए
उन्होंने अन्तिम साँस ली
00

वे फुदकते रहे
घर के अन्दर
जैसे पिंजरे में तोता
उनके आकाश में
चील-बाजों का आतंक था
वे पूछते कौन
आवाज़ पर यकीन नहीं करते
आदमी के मुँह पर टॉर्च जलाते
कोई ख़तरा न देख
मेहमानों को
घर के अन्दर ले लेते|

उन्होंने दो-एक ज़रूरी यात्राएँ की
हालाँकि अजनबियों से फ़ासला बनाकर रखा
किसी का कुछ नहीं चखा
घर से ही पानी ले गए
कभी किसी पर उनका दिल नहीं आया
पर वे मुस्कुराए
हँसे भी
खतरों का सामना करने के लिए
बिना प्रेम के
पचासी साल तक
वे रोटियाँ निगलते और पचाते रहे
00

प्रेमियों को
वे पसन्द नहीं कर पाए
प्रेमियों को
उन्होंने बड़े ख़ौफ़नाक तरीके से
नफ़रत करते हुए देखा
बारूद और तूफ़ान से भी ज़्यादा
वे प्रेम से डरते|
जिनका मकान नहीं बना
जिन्हें औरत छोड़कर चली गई
जो खुले में हिरण जैसा दौड़ते
जो आवारा घूमते
जिन्होंने शराब से किडनी ख़राब कर ली
जो आधी रात तारों को निहारते
आदमियों का बखान तीर्थस्थल की तरह करते
मौत की तारीख़ याद नहीं रखते
फाटक खुला छोड़कर निकल जाते
उन्हें वे बहुत दूर से
और किसी बड़ी मज़बूरी में ही
हाथ जोड़कर नमस्कार करते|

बाढ़ के बाद - अमिताभ बच्चन|

असमय मर गए
ये एक जवान प्रवासी खेत-मज़दूर का
मिट्टी का घर है
जो ज़मीन पर पड़ा है

छप्पर सम्भालने वाला
लकड़ी का खम्भा
अब तक खड़ा है

पेड़ के नीचे बैठी
आसमान में उड़ते बादलों को निहारती
बेआवाज़ रोती हुई
प्रवासी मज़दूर की चिन्तामग्न बीवी
जिसकी छाती का सारा दूध सूख गया है
और गोद में बच्चा भूख से बिलबिला रहा है
जल्द से जल्द
घर खड़ा करने के बारे में सोच रही है

चौकी पर लोहे की एक पेटी है
जिस पर लाल गुलाब के छापे हैं

एक छाता है
जो बिना दिक़्क़त के खुल सकता है

शराब की छोटी बोतल है
जिसकी पेंदी में सरसों तेल की कुछ बून्दें हैं

खजूर की पत्तियों से बना एक डब्बा है
जिस पर फफून्द लगी है

स्टील के एक टूटे बर्तन में दो बैट्री हैं
जिसके अन्दर का रसायन बाहर आ रहा है

लकड़ी की एक बदरंग कुर्सी है
उसके नीचे अल्युमिनियम का एक बहुत पुराना बदना है

एक काला तवा है
पानी जिसका किनारा बुरी तरह खा चुका है

जीवनरक्षक दवाओं की कुछ टूटी बोतलें हैं
जो अपने मकसद में नाकाम रहीं

खम्भे से टँगा एक काले लोहे का कजरौटा है
कुछ फटे-पुराने कपड़ों के साथ रखा है एक टार्च
जिसका पीतल हरा हो रहा है

चमड़ा सड़ गया है
ढोलक नंगा हो गया है
पर वह बज रहा है
और उसमें आदमी को रुलाने की ताक़त बची हुई है|

दूर और पास - अमिताभ बच्चन

एक दूरी से बेटी जानती है वह माँ के साथ है
बेटी कहती है ये दूरी नितान्त ज़रूरी है
इसी नतीजे पर माँ भी पहुँची है
दोनों कहती हैं सबका अपना जीवन है
दोनों ने मान लिया है कि साथ रहेंगे तो
खटमल की तरह एक-दूसरे का ख़ून पीएँगे
दोनों को लगता है कि हाँ, वे हैं एक दूसरे के लिए
मगर दोनों हँसकर कहती हैं कि दूर रहकर वे ज़्यादा पास हैं
कितनी दूरी पर निकटता का अहसास बना रहेगा
ये छल-बल से तय होता है हर बार
ये तय होता है माँ-बेटी की बाज़ीगरी से
दोनों इस छल-बल और बाजीगरी में पूरी दुनिया को खींच लाती हैं
दोनों दूर होकर भी पास रहने की विकट कला रोज़ सीखती हैं
उनकी आज़ादी और प्यार के बचे रहने की
सबसे ज़रूरी शर्त आख़िर ये दूरी क्यों है
दूरी में अपनी भलाई देखने वाली इन अभिशप्त माँ-बेटियों से
कब मुक्त होगी ये दुनिया
लोग कब मन ही मन ये बुदबुदाना छोड़ेंगे
कि हाँ, दूर रहने में ही भलाई है
कि हाँ, दूर रहने में ही भलाई है|