गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

मैना - श्रीधर पाठक

सुन-सुन री प्यारी ओ मैना,
जरा सुना तो मीठे बैना।
काले पर, काले हैं डेना,
पीली चोंच कंटीले नैना।
काली कोयल तेरी मैना,
यद्यपि तेरी तरह पढ़ै ना।
पर्वत से तू पकड़ी आई,
जगह बंद पिजड़े में पाई।
बानी विविध भाँति की बोले,
चंचल पग पिंजड़े में डोले।
उड़ जाने की राह न पावै,
अचरज में आकर घबरावै।

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