सोमवार, 14 दिसंबर 2015

क्यों हिज्र के शिकवे करता है - 'हफ़ीज़' जालंधरी

क्यों हिज्र के शिकवे करता है, क्यों दर्द के रोने रोता है?
अब इश्क किया है तो सब्र भी कर, इसमें तो यही कुछ होता है 

आगाज़-ए-मुसीबत होता है, अपने ही दिल की शरारत से 
आँखों में फूल खिलाता है, तलवो में कांटें बोता है 

अहबाब का शिकवा क्या कीजिये, खुद ज़ाहिर व बातें एक नहीं 
लब ऊपर ऊपर हँसतें है, दिल अंदर अंदर रोता है 

मल्लाहों को इलज़ाम न दो, तुम साहिल वाले क्या जानों 
ये तूफान कौन उठता है, ये किश्ती कौन डुबोता है 

क्या जाने क्या ये खोएगा, क्या जाने क्या ये पायेगा 
मंदिर का पुजारी जागता है, मस्जिद का नमाजी सोता है

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