बुधवार, 2 दिसंबर 2015

मेरा गीत दिया बन जाए - गोपालदास "नीरज"

अंधियारा जिससे शरमाये, 
उजियारा जिसको ललचाये, 
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम 
मेरा गीत दिया बन जाये! 

इतने छलको अश्रु थके हर 
राहगीर के चरण धो सकूं, 
इतना निर्धन करो कि हर 
दरवाजे पर सर्वस्व खो सकूं 

ऐसी पीर भरो प्राणों में 
नींद न आये जनम-जनम तक, 
इतनी सुध-बुध हरो कि 
सांवरिया खुद बांसुरिया बन जायें! 

ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम 
मेरा गीत दिया बन जाये!! 

घटे न जब अंधियार, करे 
तब जलकर मेरी चिता उजेला, 
पहला शव मेरा हो जब 
निकले मिटने वालों का मेला 

पहले मेरा कफन पताका 
बन फहरे जब क्रान्ति पुकारे, 
पहले मेरा प्यार उठे जब 
असमय मृत्यु प्रिया बन जाये! 

ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम 
मेरा गीत दिया बन जाये!! 

मुरझा न पाये फसल न कोई 
ऐसी खाद बने इस तन की, 
किसी न घर दीपक बुझ पाये 
ऐसी जलन जले इस मन की 

भूखी सोये रात न कोई 
प्यासी जागे सुबह न कोई, 
स्वर बरसे सावन आ जाये 
रक्त गिरे, गेहूँउग आये! 

ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम 
मेरा गीत दिया बन जाये!! 

बहे पसीना जहाँ, वहाँ 
हरयाने लगे नई हरियाली, 
गीत जहाँ गा आय, वहाँ 
छा जाय सूरज की उजियाली 

हँस दे मेरा प्यार जहाँ 
मुसका दे मेरी मानव-ममता 
चन्दन हर मिट्टी हो जाय 
नन्दन हर बगिया बन जाये। 

ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम 
मेरा गीत दिया बन जाये!! 

उनकी लाठी बने लेखनी 
जो डगमगा रहे राहों पर, 
हृदय बने उनका सिंघासन 
देश उठाये जो बाहों पर 

श्रम के कारण चूम आई 
वह धूल करे मस्तक का टीका, 
काव्य बने वह कर्म, कल्पना- 
से जो पूर्व क्रिया बन जाये! 

ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम 
मेरा गीत दिया बन जाये!! 

मुझे श्राप लग जाये, न दौङूं 
जो असहाय पुकारों पर मैं, 
आँखे ही बुझ जायें, बेबेसी 
देखूँ अगर बहारों पर मैं 

टूटे मेरे हाथ न यदि यह 
उठा सकें गिरने वालों को 
मेरा गाना पाप अगर 
मेरे होते मानव मर जाय! 

ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम 
मेरा गीत दिया बन जाये!!

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