जाड़े की धूप - अरविन्द अवस्थी
कई दिन तक घिरे घने कुहासे के बाद
खिली धूप
जाड़े की ।
देखकर
खिल उठा मन जैसे
छठें वेतन
आयोग के अनुसार
मिली हो
तनख़्वाह की पहली किस्त ।
जैसे
साठ रुपये किलो से
बारह पर आ
गया हो, प्याज का
भाव ।
धूप से मैं
और धूप मुझसे
दोनों एक
दूसरे से लिपट गए
जैसे
स्कूल से पढ़कर लौटे, नर्सरी के बच्चे को
लिपटा
लेती है माँ ।
धूप सोहा
रही थी जैसे ,जली
चमड़ी पर
बर्फ़ का
टुकड़ा ।
धूप खिलने
की ख़बर, आतंकी
अफ़ज़ल कसाब की
गिरफ़्तारी
के समाचार-सी फैल गई
गाँव-गाँव, शहर-शहर ।
लोग
बाँचने लगे, उलट-पुलट
कर, एक-एक पृष्ठ ।
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