बुधवार, 16 दिसंबर 2015

जाड़े की धूप - अरविन्द अवस्थी


कई दिन तक घिरे घने कुहासे के बाद
खिली धूप जाड़े की ।
देखकर खिल उठा मन जैसे

छठें वेतन आयोग के अनुसार
मिली हो तनख़्वाह की पहली किस्त ।
जैसे साठ रुपये किलो से
बारह पर आ गया हो, प्याज का भाव ।
धूप से मैं और धूप मुझसे
दोनों एक दूसरे से लिपट गए
जैसे स्कूल से पढ़कर लौटे, नर्सरी के बच्चे को
लिपटा लेती है माँ ।
धूप सोहा रही थी जैसे ,जली चमड़ी पर
बर्फ़ का टुकड़ा ।
धूप खिलने की ख़बर, आतंकी अफ़ज़ल कसाब की
गिरफ़्तारी के समाचार-सी फैल गई
गाँव-गाँव, शहर-शहर ।
लोग बाँचने लगे, उलट-पुलट कर, एक-एक पृष्ठ ।

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