मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

ज़िंदगी कुछ नहीं बस एक मुसीबत होगी - श्रद्धा जैन

जब कभी मुझको गम-ए-यार से फुर्सत होगी 
मेरी गजलों में महक होगी, तरावत होगी 

भुखमरी, क़ैद, गरीबी कभी तन्हाई, घुटन
सच की इससे भी जियादा कहाँ कीमत होगी

धूप-बारिश से बचा लेगा बड़ा पेड़ मगर 
नन्हे पौधों को पनपने में भी दिक्क़त होगी 

बेटियों के ही तो दम से है ये दुनिया कायम
कोख में इनको जो मारा तो क़यामत होगी 

आज होंठों पे मेरे खुल के हंसी आई है 
मुझको मालूम है उसको बड़ी हैरत होगी 

नाज़ सूरत पे, कभी धन पे, कभी रुतबे पर
ख़त्म कब लोगों की आखिर ये जहालत होगी 

जुगनुओं को भी निगाहों में बसाए रखना 
काली रातों में उजालों की ज़रूरत होगी 

वक़्त के साथ अगर ढल नहीं पाईं 'श्रद्धा' 
ज़िंदगी कुछ नहीं बस एक मुसीबत होगी |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें