बुधवार, 16 दिसंबर 2015

भूख - अरविन्द अवस्थी


कोई व्यक्ति धर्म-निरपेक्ष नहीं होता
कोई जाति धर्म-निरपेक्ष नहीं होती

कोई ढिंढोरा भले ही पीटे लेकिन,
इतिहास भी धर्म-निरपेक्ष कहाँ होता है !

धर्म-निरपेक्ष होती है तो केवल और केवल भूख.
जिसकी न कोई जाति है, न बिरादरी,
न धर्म है न संप्रदाय ।
निस्संग भाव से  करती है वरण
बिना किसी पक्षपात के
छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी का ।

छुआछूत के भेदभाव से भी भूख का
कोई रिश्ता नहीं होता ।

कोई रिश्ता नहीं होता
वाम-पंथ और दक्षिण-पंथ से,
संन्यासी या गृहस्थ से ।
मान-सम्मान की अनुभूति से भी परे होती है भूख
तभी तो बिना बुलाए ही आ टपकती है ।
दुख में, सुख में सर्दी में, गर्मी में
देर-सबेर भले कर दे लेकिन ज़रूर आती है
नियम से सबके पास ।
 
हमें लगता है अतिशयोक्ति न होगा यह कहना
कि भूख एक सत्य है बिलकुल मृत्यु की तरह
अटल सत्य ।
जिसका स्वागत करता है कोई हॅंसकर
तो कोई विवश होकर तो कोई
भूख की गोद में ही समा जाता है
उसका कौर बनकर ।

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