कोई व्यक्ति धर्म-निरपेक्ष नहीं होता
कोई जाति
धर्म-निरपेक्ष नहीं होती
कोई
ढिंढोरा भले ही पीटे लेकिन,
इतिहास भी
धर्म-निरपेक्ष कहाँ होता है !
धर्म-निरपेक्ष
होती है तो केवल और केवल भूख.
जिसकी न
कोई जाति है, न
बिरादरी,
न धर्म है
न संप्रदाय ।
निस्संग
भाव से करती है वरण
बिना किसी
पक्षपात के
छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी का ।
छुआछूत के
भेदभाव से भी भूख का
कोई
रिश्ता नहीं होता ।
कोई
रिश्ता नहीं होता
वाम-पंथ
और दक्षिण-पंथ से,
संन्यासी
या गृहस्थ से ।
मान-सम्मान
की अनुभूति से भी परे होती है भूख
तभी तो
बिना बुलाए ही आ टपकती है ।
दुख में, सुख में सर्दी में, गर्मी में
देर-सबेर
भले कर दे लेकिन ज़रूर आती है
नियम से
सबके पास ।
हमें लगता
है अतिशयोक्ति न होगा यह कहना
कि भूख एक
सत्य है बिलकुल मृत्यु की तरह
अटल सत्य ।
जिसका
स्वागत करता है कोई हॅंसकर
तो कोई
विवश होकर तो कोई
भूख की
गोद में ही समा जाता है
उसका कौर
बनकर ।
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