शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

निन्यानवें चेहरे - ओमप्रकाश सारस्वत

मेरे युग का चमत्कार है 
सब चीज़ तैयार 
लिफाफे हैं, पालिश है 
हर चीज़ ख़ालिस है 
ले लो बज़ार से 
किसी दुकानकार से 
हर चेक्ष ‘पैक्ड’ है
कोई नहीं ‘नेक्ड’ है 

यह कोई आदिम युग नहीं 
जहाँ हर वस्तु अपने
प्राकृतिक,स्वभाविक
रूप में मिलेगी 
तुम को दिखेगी 

यह सभ्य ज़माना है 
यहाँ कोई नहीं बेगाना है 
यहाँ सारे ही प्यारे है
प्यार के मारे हैं 

इस लिए हर आँख बुलाती है 
हर साँस पिलाती है 
हर सीना धड़कता है 
हर माथा मचलता है 
यहाँ पर कुछ भी पराया नहीँ 

यह मत सोचो कि हमने 
काला चश्मा लगाया है और 
ख़ुद को, तुम्हारी नज़रों से बचाया है 

प्रिय ! 
यह तो मात्र दृष्टि को 
और स्थिर करने को
औरों से बचने को 
तुम को निरखने को 
मेरे युग का आविष्कार है 
अब समाधि की मुद्रा में 
प्रिय को क्यों ढूँढेंगे? 
कयोंकि अब चश्मा ही दृष्टि को 
खुली हुई सृष्टि में
प्रियतम दिखाने में 
अधिक उपयोगी है 
इललिये आज हर प्रेमी भी योगी है
और मत सोचो 
कि मेरे ये वस्त्र 
तुम्हारे उन पारखी,
नेत्रों को देह के
क्षितिजों में, जाने से रोकेंगे 
तुम को ये टोकेंगे 

मेरा युग विज्ञ है 
यद्यपि अनभिज्ञ है 
फिर भी सयाना है 
यह नया ज़माना है

यहाँ हरेक को छूट है 
हर वस्तु की लूट है
पर ढक कर ले जाना 
या अँधेरे में आना 
(वैसे यह तुम्हारे बाली बात है,वरना)

क्योंकि
यहाँ हर आँख सुनती है 
हर कान निरखता है 


इसलिए मेरे युग के निर्माताओं ने 
मुक्त हस्तदाताओं ने 
लिफाफे बनाए हैं 
परदे सजाए हैं

अतः क्यों अपनी 
बेइज्जती कराते हो
घर की वस्तु को बाहर दिखाते हो 
अरे,लिफ़ाफे में डालो 
गर परदा लगा लो 
फिर जैसे भी ख़ोलो 
पर आहिस्ता बोलो 
यह नये युग का संविधान है 
यहाँ सब कुछ की छूट है 
बस लूट ही लूट है 
देखो यहाँ झूठ भी ख़ालिस 
बिन पालिश नहीं चलता 
इस लिए मज़बूरी है 
यहाँ ‘पॉलिश’ नहीं चलता 
इस लिए मजबूरी है 
यहाँ ‘पॉलिश,ज़रूरी है 
अतः हर मुख,पुता है 
वो बहू है या सुता है

 यहाँ ‘टैक्निकलर’ चलता है 
‘ईस्टमैन’ जँचता है 
‘गेवा’ रंग भाता है 
सब को सुहाता है 


वैसे असली चमक इनकी 
‘पोस्टर पै रखाअंकित जिस्मों पै आती है 

कल राम और श्याम देखे 
संध्या को माया के 
रंगीन पल्लू से उलझे ही उलझे वे
गुदगुदे बदन की गंधि को पीते थे

यहाँ बस रंग बिकता है 
शुद्ध तो पिटता है 

बस रंगीन सुबहें हैं 
रंगीन शामें हैं 
रंगीन जिस्मों की 
रंगीन माँगें हैं 


क्योंकि मैं भी दुकानदार हूँ 
इसलिए भई ग्राहक को 
सभ्यतावाहक को 
नाराज़ नाहक में
थोड़े ही करना है 
फिर इस पेट पापी को कैसे तो भरना है

इसलिये बंधु !मेरे पास भी लिफाफे हैं, 
पालिश है 
परदे भी ख़ालिस हैं 

पर एक ओर,आज की 
चलती हुई चीज़ है 
कहो तो दिखाऊं मैं 
कल ही मंगवाए थे 
केवल सौ आए थे 
बस एक बचता है 
हरेक पै जंचता है 
कहो तो बांधूं मैं 
बस एक मुखौटा है 

बाबू जी ! आज 
निन्यानबें चेहरे हैं 
जो मुखौटे पहनते हैं

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