बुधवार, 4 नवंबर 2015

निंदिया आ री - भगवतीप्रसाद द्विवेदी

निंदिया, तू है कितनी प्यारी,
बिटिया की अंखियों में आ री!
आ जा फुदक-फुदक चिड़िया-सी
रुनझुन-गुनगुन गाती,
आंगन में उतरी चंदनिया
ठुमक-ठुमक लहराती।
आ जा सजा सपन फुलवारी,
महके मह-मह क्यारी-क्यारी।
नींद समंदर में सोए हैं
सूरज दादा थककर,
चंदा में बैठी बुढ़िया भी
लेटी नींद झपककर।
नयनों में छा गई खुमारी,
सोई तितली प्यारी-प्यारी।
उड़नखटोले में बैठाकर
परियों को भी लाना,
बिटिया को भी परीलोक की
मीठी सैर कराना।
पलने में हम रहे झुला री,
निंदिया खील-बताशे खा री!

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