सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

हाँ, मैं पहाड़ हूँ - केशव

न जाने 
कब से खड़ा हूँ

आसमान से होड़ लेता 
चूहे तक के साहस को 
चुनौती देता 
सोचता 
कि बड़ा हूँ 
छू सकता हूँ
ईश्वर तक को 
वहां से 
जहां मैं खड़ा हूँ 
इस बोध से वंचित 
कि बड़े से बड़ा भी 
किसी से छोटा होता है 
सिक्कों के चमचमाते ढेर में 
एक-आध सिक्का 
खोटा भी होता है 
भले ही हर युग गवाह 
पर मेरी पीड़ा अथाह 
जानकर भी न जान पाने की 
मानकर भी न मान पाने की 
हाँ, मैं पहाड़ हूँ 
सीने में दफन 
आर्त्तनाद को 
उलीचने के लिए 
हर पल उद्यत 
छटपटाती 
एक मूक दहाड़ हूँ 
हाँ, मैं एक पहाड़ हूँ।

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