सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

मँहगाई - काका हाथरसी

जन-गण मन के देवता, अब तो आँखें खोल 
महँगाई से हो गया, जीवन डाँवाडोल 
जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालू 
कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन-आलू 
कहँ 'काका' कवि, दूध-दही को तरसे बच्चे 
आठ रुपये के किलो टमाटर, वह भी कच्चे 

राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर 
'क्यू' में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर 
पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला 
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला 
कहँ 'काका' कवि, करके बंद धरम का काँटा 
लाला बोले-भागो, खत्म हो गया आटा|

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