मंगलवार, 8 सितंबर 2015

कबीर दोहावली -भाग १२

सुमरण की सुब्यों करो ज्यों गागर पनिहार । 
होले-होले सुरत में, कहैं कबीर विचार ॥ 111 ॥ 

सब आए इस एक में, डाल-पात फल-फूल । 
कबिरा पीछा क्या रहा, गह पकड़ी जब मूल ॥ 112 ॥ 

जो जन भीगे रामरस, विगत कबहूँ ना रूख । 
अनुभव भाव न दरसते, ना दु:ख ना सुख ॥ 113 ॥ 

सिंह अकेला बन रहे, पलक-पलक कर दौर । 
जैसा बन है आपना, तैसा बन है और ॥ 114 ॥ 

यह माया है चूहड़ी, और चूहड़ा कीजो । 
बाप-पूत उरभाय के, संग ना काहो केहो ॥ 115 ॥ 

जहर की जर्मी में है रोपा, अभी खींचे सौ बार । 
कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार ॥ 116 ॥ 

जग मे बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय । 
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय ॥ 117 ॥ 

जो जाने जीव न आपना, करहीं जीव का सार । 
जीवा ऐसा पाहौना, मिले ना दूजी बार ॥ 118 ॥ 

कबीर जात पुकारया, चढ़ चन्दन की डार । 
बाट लगाए ना लगे फिर क्या लेत हमार ॥ 119 ॥ 

लोग भरोसे कौन के, बैठे रहें उरगाय । 
जीय रही लूटत जम फिरे, मैँढ़ा लुटे कसाय ॥ 120 ॥ 

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