न धरती पर न नभ में अब कहीं कोई हमारा है
हमारी बेबसी ने आज फिर किसको पुकारा है |
हमें तक़दीर तूने उम्र भर धोखे किये हरदम
वहीं पानी मिला गहरा, जहाँ समझे किनारा है |
भुला बैठे थे हम तुमको, तुम्हारी बेवफ़ाई को
मगर महफ़िल में देखो आज फिर चर्चा तुम्हारा है |
वो पछुआ हो कि पुरवा, गर्म आँधी सी लगी हमको
कभी शीतल हवाओं ने कहाँ हमको दुलारा है |
बड़ा अहसान होगा ज़िंदगी इतना तो बतला दे
वो हममें क्या कमी है जो नहीं तुझको गवारा है |
हमें जो चैन से जीने नहीं देती तेरी दुनिया
ये उसकी अपनी मर्जी है, कि फिर तेरा इशारा है |
गिला, शिकवा, शिकायत हम करें भी तो करें किससे
हमें तो सिर्फ अपने हौसले का ही सहारा है |
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