रविवार, 6 सितंबर 2015

झिलमिल तारे - सुभद्राकुमारी चौहान

कर रहे प्रतीक्षा किसकी हैं 
झिलमिल-झिलमिल तारे?
धीमे प्रकाश में कैसे तुम 
चमक रहे मन मारे।। 

अपलक आँखों से कह दो 
किस ओर निहारा करते?
किस प्रेयसि पर तुम अपनी 
मुक्तावलि वारा करते? 

करते हो अमिट प्रतीक्षा, 
तुम कभी न विचलित होते।
नीरव रजनी अंचल में 
तुम कभी न छिप कर सोते।। 

जब निशा प्रिया से मिलने, 
दिनकर निवेश में जाते।
नभ के सूने आँगन में 
तुम धीरे-धीरे आते।।

विधुरा से कह दो मन की, 
लज्जा की जाली खोलो।
क्या तुम भी विरह विकल हो, 
हे तारे कुछ तो बोलो।

मैं भी वियोगिनी मुझसे 
फिर कैसी लज्जा प्यारे?
कह दो अपनी बीती को 
हे झिलमिल-झिलमिल तारे!

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