सोमवार, 7 सितंबर 2015

कबीर दोहावली -भाग ४

दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय । 
बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ॥ 31 ॥ 

दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर । 
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ 32 ॥ 

दस द्वारे का पिंजरा, तामें पंछी का कौन । 
रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन ॥ 33 ॥ 

ऐसी वाणी बोलेए, मन का आपा खोय । 
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ॥ 34 ॥ 

हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट । 
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥ 35 ॥ 

कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार । 
साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ॥ 36 ॥ 

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय । 
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥ 37 ॥ 

मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय । 
मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय ॥ 38 ॥ 

सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप । 
यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप ॥ 39 ॥ 

अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ । 
मानुष से पशुआ करे दाय, गाँठ से खात ॥ 40 ॥ 

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