मंगलवार, 15 सितंबर 2015

आदमी खुद - ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

आदमी ख़ुद से डर गया होगा
वहशते-दिल से मर गया होगा |

मुझ में इक आदमी भी रहता था
राम जाने किधर गया होगा |

कितना ख़ामोश अब समंदर है
ज्वार बदनाम कर गया होगा |

मोम पाषाण हो गया आख़िर
प्यार हद से गुज़र गया होगा |

आपको अपने सामने पाकर
आइना ख़ुद सँवर गया होगा |

उसने इंसानियत से की तौबा
सब्र का जाम भर गया होगा |

तुम कहाँ थे पराग अब तक तो
रंगे-महफ़िल उतर गया होगा |

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