शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

किसी का स्वागत - अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

आज क्यों भोर है बहुत भाता।
क्यों खिली आसमान की लाली।
किस लिए है निकल रहा सूरज।
साथ रोली भरी लिये थाली।1।

इस तरह क्यों चहक उठीं चिड़ियाँ।
सुन जिसे है बड़ी उमंग होती।
ओस आ कर तमाम पत्तों पर।
क्यों गयी है बखेर यों मोती।2।

पेड़, क्यों हैं हरे भरे इतने।
किस लिए फूल हैं बहुत फूले।
इस तरह किसलिए खिलीं कलियाँ।
भौंर हैं किस उमंग में भूले।3।

क्यों हवा है सँभल सँभल चलती।
किसलिए है जहाँ तहाँ थमती।
सब जगह एक एक कोने में।
क्यों महक है पसारती फिरती।4।

लाल नीले सुफेद पत्तों में।
भर गये फूल बेलि बहली क्यों।
झील तालाब और नदियों में।
बिछ गईं चादरें सुनहली क्यों।5।

किसलिए ठाट बाट है ऐसा।
जी जिसे देख कर नहीं भरता।
किसलिए एक एक थल सज कर।
स्वर्ग की है बराबरी करता।6।

किसलिए है चहल पहल ऐसी।
किसलिए धूम धाम दिखलाई।
कौन सी चाह आज दिन किसकी।
आरती है उतारने आई।7।

देखते राह थक गईं आँखें।
क्या हुआ क्यों तुम्हें न पाते हैं।
आ अगर आज आ रहा है तू।
हम पलक पाँवड़े बिछाते हैं।8।

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