सोमवार, 7 सितंबर 2015

कबीर दोहावली -भाग ६

समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय । 
मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥ 51 ॥ 

हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय । 
जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ॥ 52 ॥ 

कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय । 
एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय ॥ 53 ॥ 

वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल । 
बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल ॥ 54 ॥ 

कली खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय । 
चाहे कहँ सत आइना, जो जग बैरी होय ॥ 55 ॥ 

कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय । 
भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥ 56 ॥ 

जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय । 
सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय ॥ 57 ॥ 

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय । 
सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय ॥ 58 ॥ 

लागी लगन छूटे नाहिं, जीभ चोंच जरि जाय । 
मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय ॥ 59 ॥ 

भक्ति गेंद चौगान की, भावे कोई ले जाय । 
कह कबीर कुछ भेद नाहिं, कहां रंक कहां राय ॥ 60 ॥ 

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