सोमवार, 7 सितंबर 2015

कबीर दोहावली -भाग १

दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय । 
जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥ 1 ॥ 

तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय । 
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ॥ 2 ॥ 

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । 
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥ 3 ॥ 

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । 
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥ 4 ॥ 

बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार । 
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 5 ॥ 

कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख । 
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ 6 ॥ 

सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद । 
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ 7 ॥ 

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय । 
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ 8 ॥ 

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट । 
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥ 9 ॥ 

जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान । 
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ 10 ॥ 

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