शनिवार, 26 दिसंबर 2015

जाड़े की रात! - चंद्रपाल सिंह यादव 'मयंक'

यह जाड़े की रात
कँटीली यह जाड़े की रात,
बिस्तर में भी काँप रहा है
थर-थर-थर-थर गात।

हवा तीर सी लगती आकर
खुलती अगर रजाई,
जाने इतनी ठंड कहाँ से
हवा मुई ले आई।
हड्डी-हड्डी काँप रही है,
कट-कट करते दाँत!

हे भगवान बड़ा दुख देता
आकर हमको जाड़ा,
जाने इसका हम लोगों ने
है क्या काम बिगाड़ा,
दे दो इसको देश निकाला
मानो मेरी बात!

दादी जी इससे घबराती
दादा जी भी डरते,
हम बच्चे भी इस जाड़े में
छींका खाँसा करते।
हाय मुसीबत तब बढ़ जाती,
जब होती बरसात!

जादूगर अलबेला - चंद्रपाल सिंह यादव 'मयंक'

छू, काली कलकत्ते वाली!
तेरा वचन न जाए खाली।
मैं हूँ जादूगर अलबेला,
असली भानमती का चेला।
सीधा बंगाले से आया,
जहाँ-जहाँ जादू दिखलाया।
सबसे नामवरी है पाई,
उँगली दाँतों-तले दबाई।
जिसने देखा खेल निराला,
जादूगर बंगाले वाला,
जमकर खूब बजाई ताली!

वह ही मंत्र-मुग्ध हो जाता,
पैसा नहीं गाँठ से जाता।
चाहूँ तिल का ताड़ बना दूँ,
रुपयों का अंबार लगा दूँ।
अगर कहो, तो आसमान पर,
तुमको धरती से पहुँचा दूँ।
ऐसे-ऐसे मंतर जानूँ,
दुख-संकट छू-मंतर कर दूँ,
बने कबूतर, बकरी काली।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

मौसम के बच्चे - चंद्रपाल सिंह यादव 'मयंक'

मौसम के तीन बच्चे हैं-
एक लड़का, दो लड़कियाँ।

लड़के का नाम जाड़ा है,
शैतान है, मतवाला है,
नहाने से डराता है,
देह कंपकंपाता है,
फिर भी मन भाता है,
फलों और मेवों के
ढेर लगा जाता है।
खिलाने-पिलाने का
है शौकीन बड़ा,
बच्चों को कर देता है तगड़ा।

एक लड़की है गरमी,
मानती नहीं शरमा शरमी।
गरम साँसें निकालती है,
कपड़े फाड़ डालती है।
फिर भी क्या बात है,
कि धनी हो या निर्धन
सबको सँभालती है।
पहाड़ों की सैर को,
बड़ी भीड़ जाती है,
लेकिन वह अपने दिन
यहीं पर बिताती है,
लस्सी पिलाती है
आम से लुभाती है
बच्चों को खिलाती है
आइसक्रीम!

और तीसरी जो वर्षा है,
रुई के गालों में
छिपी-छिपी आती है,
घुरड़-घुरड़ डराती है,
घड़ों पानी लुढ़काती है,
पोधों को फसलों को,
देती है नव जीवन,
बच्चों की दुनिया को
छप-छप का आमंत्रण।
कागज की कश्ती से
खेलता है बचपन
जिनको भी भाते हैं
रुई के वे गोले,
कभी-कभी उनको
खिलाती है यह ओले!

मुझे उनसे मिलना है - चंद्र कुमार जैन

मुझे उनसे मिलना है
जो कम से कम यह जानते हैं
कि वे कुछ नहीं जानते !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो अपनी जानकारी को ही
विज्ञान समझते हैं !
और मुझे मिलना है उनसे
जो अपना घर जलाकर
औरों की दुनिया रौशन करते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो दूसरों के अंधेरे में
अपनी रोशनी आबाद करते हैं !
मुझे उनसे मिलना है
जो अपने घरों का कचरा
औरों पर नहीं फेंकते !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो दूसरों का आंचल देख
खुद को बेदाग समझते हैं !
मुझे उनसे मिलना है
जो दूसरों की आग पर
अपनी रोटी नहीं सेंकते !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो अपने चूल्हे के धुऍ से
दूसरों की दृष्टि छीनते हैं !
मुझे उनसे मिलना है
जो कुछ कहना
और कुछ करना भी जानते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो बिना चले
बस सिर हिलाते हैं !
मुझे उनसे मिलना है
जो अपने होने पर
वि वास रखते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो केवल कुछ बनने का
ख्वाब रखते हैं !
...और मुझे उनसे मिलना है
जो जीने के खातिर
सांसों का साथ देते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो सिर्फ सांसों को
जीना समझ लेते हैं !

एक कदम - चंद्र कुमार जैन

अंधेरा चाहे जितना घना हो
पहाड़ चाहे जितना तना हो
एक लौ यदि लग जाए
एक कदम यदि उठ जाए
कम हो जाता है अंधेरे का असर
झुक जाती है पहाड़ की भी नज़र
अंधेरा तो रौशनी की रहनुमायी है
पहाड़ तो प्रेम की परछाईं है
सच तो यह है -
धाराओं के विपरीत
जो जितनी भाक्ति से
खड़ा होता है
उस आदमी का व्यक्तित्व
एक दिन उतना ही बड़ा होता है !

आलोकित कल होगा - चंद्र कुमार जैन

जीवनदान करें, बेला है बलिदानों की आज !
प्रात: से रवि टेर रहा है
ललित प्रभा का बीज उगाओ
धरती के कोने-कोने में
मानवता का अलख जगाओ
त्याग, दया, करूणा के घर में,
सफल बनें सब काज !
कण-कण, तृण-तृण आमंत्रित कर,
महा शक्ति का प्राण जगाओ,
फूलों से कोमलता लेकर
नवजीवन के गीत सुनाओ
कभी आस्था के आंगन में, गिरे न कोई गाज़ !
स्वत्व, शौर्य और स्वाभिमान का,
और भविष्य का भान रहे
लुप्त न हो निज-पन अपना
निज-शान रहे, यह ध्यान रहे
आलोकित कल होगा, चाहे रहे अंधेरा आज !
जीवनदान करें, बेला है बलिदानों की आज !

पतझर का झरना देखो तुम - चंद्र कुमार जैन

मधु-मादक रंगों ने बरबस,
इस तन का श्रृंगार किया है !
रंग उसी के हिस्से आया,
जिसने मन से प्यार किया है !
वासंती उल्लास को केवल,
फागुन का अनुराग न समझो !
ढोलक की हर थाप को केवल,
मधुऋतु की पदचाप न समझो !!
भीतर से जो खुला उसी ने,
जीवन का मनुहार किया है !
रंग उसी के हिस्से...
पतझर में देखो झरना तुम,
फिर वसंत का आना देखो !
पीड़ा में जीवन की क्रीड़ा,
आँसू में मुस्काना देखो !!
सुख-दुख में यदि भेद नहीं है,
समझो जीवन पूर्ण जिया है !
रंग उसी के हिस्से...

एक दीप सूरज के आगे - चंद्र कुमार जैन

लीक से हटकर अलग
चाहे हुआ अपराध मुझसे,
सच कहूँ, सूरज के आगे
दीप मैंने रख दिया है !
प्रश्नों के उत्तर नये देकर
उलझना जानता हूँ ,
और हर उत्तर में जलते
प्रश्न को पहचानता हूँ !
जाने क्यों संसार मेरे
प्रश्न पर कुछ मौन सा है ,
तोड़ने इस मौन का हर स्वाद
मैंने चख लिया है !
इंद्रधनुषी स्वप्न का बिखराव
मैंने खूब देखा,
रात का रुठा हुआ बर्ताव
मैंने खूब देखा !
पर सुबह की चाह मैंने
ताक पर रखना न जाना,
हर चुनौती को सफल जीवन का
स्वीकृत सच लिया है !
धूल से उठकर लकीरें
याद के जंगल में भटकीं,
और गले में चीख के वे
दर्द के मानिंद अटकीं !
पर मुझे जो आईना था
हर घड़ी निज - पथ सुझाता,
बस उसी के नाम यादों का
झरोखा कर दिया है !
स्वप्न मृत होते नहीं
यदि दीप हरदम दिपदिपायें,
धीरे - धीरे ही सही
जलती वो बाती मुस्कराये !
कोई माने या न माने
मान दे या तुच्छ बोले
जी सकूँ हर अंधेरे में
मैंने ऐसा हठ किया है !
सच कहूँ, सूरज के आगे
दीप मैंने रख दिया है !

मक्की और चक्की - जगदीशचंद्र शर्मा

हिरन कहीं से लेकर आया
बोरे में भर मक्की,
उसकी घरवाली जंगल में
लगी पीसने चक्की।
निकला कोई शेर उधर से
करने सैर-सपाटा,
प्राण बचाकर हिरनी भागी
धरा रह गया आटा।

पानी बरसा - जगदीशचंद्र शर्मा

खोल दिया मेढक टोली ने
हर गड्ढे में एक मदरसा,
ढिंग्चक ढिंग्चक पानी बरसा।

तरह-तरह के बादल नभ में
धमा-चौकड़ी लगे मचाने,
खो-खो और कबड्डी जैसे
खेलों के खुल गए खज़ाने
लगता हर बिजली का रेला
अट्टहास उनका निर्झर-सा!

मिट्टी में नव अंकुर फूटे
दौड़ लगाते नदिया-नाले,
तालाबों के छक्के छूटे
बरसे बादल काले-काले।
देख धरा पर हरियाली को,
फिर कोई भी मोर न तरसा!

दिशा-दिशा में हलचल उभरी,
पंछी उड़े पतंगों-जैसे,
पुरवाई के हँसमुख झोंके
लगते नई उमंगों जैसे।
इंद्रधनुष के तन जाते ही
छवियों का अभिवादन सरसा!

यारी है इमान मेरा - गुलशन बावरा

ग़र ख़ुदा मुझसे कहे...
ग़र ख़ुदा मुझसे कहे कुछ माँग ऐ बंदे मेरे
मैं ये माँगूँ...
मैं ये माँगूँ महफ़िलों के दौर यूँ चलते रहें
हमप्याला हो, हमनवाला हो, हमसफ़र हमराज़ हों
ता-क़यामत...
ता-क़यामत जो चिराग़ों की तरह जलते रहें

यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी
अरे! यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी
प्यार हो बंदों से ये, ओ ओ
प्यार हो बंदों से ये सब से बड़ी है बंदगी
यारी है! यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

साज़-ए-दिल छेड़ो जहाँ में, ए ए ए
साज़-ए-दिल छेड़ो जहाँ में प्यार की गूँजे सदा
एइ, साज़-ए-दिल छेड़ो जहाँ में प्यार की गूँजे सदा
जिन दिलों में प्यार है उनपे बहारें हों फ़िदा
प्यार लेके नूर आया...
प्यार लेके नूर आया प्यार लेके सादगी
यारी है! यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

अरे! जान भी जाए अगर
जान भी जाए अगर यारी में यारों ग़म नहीं 
अपने होते यार हो ग़मगीन मतलब हम नहीं
हम जहाँ हैं उस जगह ...
हम जहाँ हैं उस जगह झूमेगी नाचेगी ख़ुशी
यारी है! यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

गुल-ए-गुलज़ार क्यों बेज़ार नज़र आता है 
चश्म-ए-बद का शिकार यार नज़र आता है
छुपा न हमसे, ज़रा हाल-ए-दिल सुना दे तू
तेरी हँसी की क़ीमत क्या है, ये बता दे तू 

कहे तो आसमाँ से चाँद-तारे ले आऊँ
हसीं जवान और दिलकश नज़ारे ले आऊँ
ओए! ओए! क़ुर्बान
तेरा ममनून हूँ तूने निभाया याराना
तेरी हँसी है आज सबसे बड़ा नज़राना 
यार के हँअस्ते ही...
यार के हँसते ही महफ़िल में जवानी आ गई, आ गई
यारी है ईमान मेरा... 
लो शेर! क़ुर्बान! क़ुर्बान!